Article 5 : Citizenship at the commencement of the Constitution
भारतीय संविधान ने 26 जनवरी 1950 को लागू होने पर नागरिकता के स्पष्ट नियम दिए। अनुच्छेद 5 ने लाखों लोगों को भारत का नागरिक बनाया, लेकिन इसमें धर्म या जाति का कोई भेदभाव नहीं था।
प्रस्तावना
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 5 बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बताता है कि संविधान लागू होने के समय कौन-कौन भारत का नागरिक माना जाएगा। 1947 में देश का विभाजन हुआ था, लाखों लोग इधर-उधर हुए। ऐसे में नागरिकता का सवाल बड़ा था। अनुच्छेद 5 ने तीन मुख्य आधार दिए: भारत में जन्म, माता-पिता में से किसी का भारत में जन्म, या पांच साल का निवास। लेकिन इसके लिए भारत में अधिवास यानी स्थायी घर होना जरूरी था।
यह अनुच्छेद सिर्फ ऐतिहासिक नहीं है। आज भी यह नागरिकता के कानूनों की नींव है। संविधान सभा में इस पर तीन दिन बहस हुई। सदस्यों ने धर्म के आधार पर नागरिकता देने का सुझाव दिया, लेकिन सभा ने इसे खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि नागरिकता न्याय और समानता पर आधारित होनी चाहिए, न कि धर्म पर। दोहरी नागरिकता का प्रस्ताव भी ठुकराया गया। अमेरिका के कानून से तुलना में इसे ज्यादा सख्त बताया गया।
शोधकर्ताओं के लिए यह अनुच्छेद दिखाता है कि भारत ने एकल और धर्मनिरपेक्ष नागरिकता चुनी। सामान्य नागरिकों के लिए यह समझना आसान है कि उनके पूर्वज कैसे नागरिक बने। इस पोस्ट में हम अनुच्छेद का पाठ, इतिहास, विश्लेषण, केस, तुलना और उदाहरण देखेंगे। इससे आपको अपने अधिकार पता चलेंगे।
अनुच्छेद 5 का पूरा पाठ
इस संविधान के प्रारंभ पर, प्रत्येक व्यक्ति जिसका भारत के राज्यक्षेत्र में अधिवास है और— (क) जिसका जन्म भारत के राज्यक्षेत्र में हुआ था; या (ख) जिसके माता-पिता में से किसी का जन्म भारत के राज्यक्षेत्र में हुआ था; या (ग) जो ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले कम से कम पाँच वर्ष तक भारत के राज्यक्षेत्र में मामूली तौर से निवासी रहा है, भारत का नागरिक होगा।
(English: At the commencement of this Constitution, every person who has his domicile in the territory of India and — (a) who was born in the territory of India; or (b) either of whose parents was born in the territory of India; or (c) who has been ordinarily resident in the territory of India for not less than five years immediately preceding such commencement, shall be a citizen of India.)
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
संविधान सभा में चर्चा
संविधान सभा ने अनुच्छेद 5 पर 10, 11 और 12 अगस्त 1949 को बहस की। सदस्यों ने कहा कि विभाजन के बाद नागरिकता स्पष्ट होनी चाहिए। कुछ ने हिंदू और सिखों के लिए विशेष नियम मांगे, लेकिन सभा ने कहा कि नागरिकता धर्म से अलग रहे। एक सदस्य ने दोहरी नागरिकता का सुझाव दिया, लेकिन इसे ठुकराया गया क्योंकि भारत एकल नागरिकता चाहता था। बहस में अमेरिका के कानून से तुलना हुई और भारत के नियम ज्यादा सख्त बताए गए। अंत में, मूल ड्राफ्ट को अपनाया गया।
ड्राफ्टिंग कमेटी का योगदान
- डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की कमेटी ने 1948 का ड्राफ्ट बनाया, जिसमें दादा-दादी का जन्म और बर्मा, सीलोन जैसे देश शामिल थे।
- कमेटी ने जटिल भाग हटाए और सरल बनाया, जैसे पांच साल निवास का नियम जोड़ा।
- कमेटी ने सुनिश्चित किया कि नियम न्यायपूर्ण हों, विदेशी नागरिकता वाले बाहर रहें।
- बहस के बाद कमेटी ने संशोधन अपनाए, जैसे 1 अप्रैल 1947 की तारीख हटाई।
मुख्य प्रावधानों का सरल विश्लेषण
क्लॉज-वाइज ब्रेकडाउन
क्लॉज 1 – अर्थ और व्याख्या
यह क्लॉज कहता है कि भारत में जन्म लेने वाला व्यक्ति, अगर भारत में अधिवास रखता है, तो नागरिक बनेगा। अधिवास का मतलब स्थायी घर है, जहां व्यक्ति हमेशा रहने का इरादा रखता हो। अदालतें कहती हैं कि सिर्फ रहना काफी नहीं, इरादा जरूरी है।
उदाहरण: मान लीजिए राम 1940 में दिल्ली में पैदा हुए। विभाजन के बाद वे भारत में रहे। अनुच्छेद 5 ने उन्हें 1950 में नागरिक बनाया।
क्लॉज 2 – अर्थ और व्याख्या
यह क्लॉज माता या पिता के भारत में जन्म पर आधारित है। अगर व्यक्ति का जन्म कहीं भी हो, लेकिन माता-पिता में से एक भारत में पैदा हुआ हो, और अधिवास हो, तो नागरिकता मिलती है। यह वंश का अधिकार मानता है।
उदाहरण: शीला का जन्म लंदन में हुआ, लेकिन उनकी मां भारत में पैदा हुईं। शीला भारत लौटीं और अधिवास बनाया। अनुच्छेद 5 ने उन्हें नागरिक माना।
क्लॉज 3 – अर्थ और व्याख्या
यह क्लॉज पांच साल के निवास पर आधारित है। अगर व्यक्ति 1945 से 1950 तक भारत में रहा हो, और अधिवास हो, तो नागरिक बनेगा। यह उन प्रवासियों के लिए था जो विभाजन में आए।
उदाहरण: अहमद 1944 में पाकिस्तान से भारत आए और पांच साल रहे। अनुच्छेद 5 ने उन्हें 1950 में नागरिक बनाया।
महत्वपूर्ण सर्वोच्च न्यायालय केस लॉ
केस 1 – Abdul Sattar Haji Ibrahim Patel v. State of Gujarat (1964)
फैक्ट्स: अब्दुल सत्तार का जन्म भारत में हुआ, लेकिन वे पाकिस्तान चले गए थे। बाद में लौटे और नागरिकता मांगी।
मुद्दा: क्या अनुच्छेद 5 के क्लॉज वैकल्पिक हैं या सबको पूरा करना जरूरी?
निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि क्लॉज वैकल्पिक हैं, एक पूरा हो तो काफी।
प्रभाव: इससे नागरिकता के दावे आसान हुए, लेकिन अधिवास साबित करना जरूरी रहा।
केस 2 – Mohammad Raza Debastani v. State of Bombay (1966)
फैक्ट्स: मोहम्मद रजा ईरान से आए, लेकिन भारत में रहते थे। उन्होंने अधिवास का दावा किया।
मुद्दा: अधिवास का मतलब क्या है?
निर्णय: अदालत ने कहा कि अधिवास के लिए स्थायी रहने का इरादा जरूरी है, सिर्फ रहना काफी नहीं।
प्रभाव: इससे अधिवास की व्याख्या सख्त हुई, विदेशी नागरिकों के दावे मुश्किल बने।
केस 3 – Firoz Meharuddin v. Sub-Divisional Officer (1960)
फैक्ट्स: फिरोज पाकिस्तान गए, लेकिन लौट आए। अनुच्छेद 7 के तहत उन्हें अयोग्य माना गया।
मुद्दा: क्या अनुच्छेद 5 अनुच्छेद 7 से ऊपर है?
निर्णय: अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 5 पूर्ण नहीं, अनुच्छेद 7 इसे ओवरराइड करता है।
प्रभाव: विभाजन के प्रवासियों के लिए नियम स्पष्ट हुए, नागरिकता खोने का खतरा बढ़ा।
केस 4 – Kulathil Mammu v. State of Kerala (1966)
फैक्ट्स: कुलाथिल मामू पाकिस्तान गए थे, लेकिन अनुच्छेद 5 के तहत दावा किया।
मुद्दा: अनुच्छेद 7 की तारीखों का प्रभाव क्या है?
निर्णय: अदालत ने तीन तारीखें बताईं: 1 मार्च 1947, 19 जुलाई 1948, 26 जनवरी 1950। अगर इनके बीच पाकिस्तान गए, तो नागरिकता नहीं।
प्रभाव: इससे ऐतिहासिक मामलों में स्पष्टता आई, शोधकर्ताओं को व्याख्या आसान हुई।
केस 5 – Rashtriya Mukti Morcha v. Union of India (2006)
फैक्ट्स: संगठन ने अनुच्छेद 5 के आधार पर बांग्लादेशी प्रवासियों की नागरिकता चैलेंज की।
मुद्दा: क्या अनुच्छेद 5 नागरिकता अधिनियम 1955 पर हावी है?
निर्णय: अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 5 सिर्फ 1950 के लिए था, अब संसद के कानून लागू।
प्रभाव: इससे नागरिकता के आधुनिक कानून मजबूत हुए, पुराने अनुच्छेद की सीमा स्पष्ट।
तुलनात्मक अध्ययन
अन्य देशों के संविधान से तुलना
भारत का अनुच्छेद 5 जन्म, वंश और निवास पर आधारित है, लेकिन एकल नागरिकता देता है।
- USA: अमेरिका में जन्म से नागरिकता (jus soli) मिलती है, चाहे माता-पिता विदेशी हों। दोहरी नागरिकता की अनुमति है। भारत से अलग, क्योंकि भारत में अधिवास जरूरी है और दोहरी नहीं।
- UK: ब्रिटेन में जन्म से नागरिकता तभी मिलती है अगर माता-पिता में से एक नागरिक या सेटल्ड हो। वंश से भी मिलती है। दोहरी नागरिकता允许 है। भारत से ज्यादा लचीला।
- Canada: कनाडा में पहले जन्म से नागरिकता मिलती थी, लेकिन अब माता-पिता का कनेक्शन जरूरी। दोहरी नागरिकता है। भारत की तरह निवास पर जोर, लेकिन ज्यादा उदार।
भारतीय राज्यों में लागू करने का तरीका
नागरिकता केंद्र का विषय है, इसलिए पूरे भारत में एक समान लागू होता है। राज्य सरकारें सिर्फ प्रमाणपत्र जारी करती हैं, लेकिन नियम केंद्र के हैं। जैसे, नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत रजिस्ट्रेशन। राज्यों में कोई अंतर नहीं, चाहे उत्तर प्रदेश हो या केरल।
आलोचना और सुधार के सुझाव
अनुच्छेद 5 की आलोचना यह है कि यह सिर्फ 1950 के लिए था, लेकिन आज के प्रवासियों के लिए पुराना पड़ गया। कुछ कहते हैं कि इसमें धर्म का कोई जिक्र नहीं, जो अच्छा है, लेकिन विभाजन के समय यह सख्त था। इसमें अधिवास की व्याख्या अस्पष्ट है, जिससे अदालतों में मुकदमे बढ़े। साथ ही, दोहरी नागरिकता न होने से NRI परेशान होते हैं।
- सुधार के सुझाव: अधिवास की परिभाषा स्पष्ट कानून बनाएं, ताकि शोधकर्ता आसानी से व्याख्या करें।
- दोहरी नागरिकता की अनुमति दें, लेकिन सुरक्षा जांच के साथ।
- प्रवासियों के लिए डिजिटल रिकॉर्ड सिस्टम लाएं, जैसे आधार से लिंक।
- भावी संशोधनों में अंतरराष्ट्रीय मानकों को शामिल करें, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा पहले।
सामान्य नागरिकों के लिए सरल उदाहरण
- अगर आपका दादा 1940 में भारत में पैदा हुए और विभाजन में पाकिस्तान नहीं गए, तो अनुच्छेद 5 ने उन्हें नागरिक बनाया। आज आप वोट देते हैं, यह उसी की वजह से।
- मान लीजिए पुलिस आपको विदेशी समझकर रोके। आप जन्म प्रमाणपत्र दिखाकर कह सकते हैं कि अनुच्छेद 5 के क्लॉज (क) से आप नागरिक हैं। इससे आपके अधिकार सुरक्षित रहते हैं।
- अगर कोई शरणार्थी 1945 से भारत में रह रहा था, जैसे तिब्बती, तो अनुच्छेद 5 ने उन्हें नागरिक बनाया। रोजमर्रा में यह मतलब है कि वे नौकरी कर सकते हैं, संपत्ति खरीद सकते हैं।
शोधकर्ताओं के लिए उन्नत बिंदु
विधिक जटिलताएँ
अनुच्छेद 5 अनुच्छेद 7 और 9 से जुड़ा है। अगर कोई पाकिस्तान गया या विदेशी नागरिकता ली, तो नागरिकता खो जाती है। यह जटिलता अदालतों में विवाद पैदा करती है।
इंटरप्रिटेशन में विवाद
अधिवास की व्याख्या पर विवाद है। कुछ अदालतें इरादे पर जोर देती हैं, कुछ रिकॉर्ड पर। इससे शोधकर्ताओं को अलग-अलग केस स्टडी करने पड़ते हैं।
भावी संशोधन की संभावना
संसद अनुच्छेद 11 से कानून बदल सकती है, जैसे CAA 2019। भविष्य में जलवायु प्रवास के लिए संशोधन हो सकता है, लेकिन धर्मनिरपेक्षता बनाए रखें।
निष्कर्ष
अनुच्छेद 5 ने भारतीय नागरिकता की मजबूत नींव रखी। यह बताता है कि भारत ने न्याय और समानता चुनी, न कि धर्म या दोहरी व्यवस्था। संविधान सभा की बहस से पता चलता है कि निर्माताओं ने सख्त लेकिन निष्पक्ष नियम बनाए। आज यह नागरिकता अधिनियम 1955 की जड़ है। शोधकर्ताओं के लिए यह दर्शाता है कि कैसे ऐतिहासिक संदर्भ कानून को आकार देते हैं। सामान्य नागरिकों के लिए यह याद दिलाता है कि उनके अधिकार कहां से आए।
अगर आप नागरिकता से जुड़े सवाल पूछना चाहें, तो पढ़ते रहें। संबंधित पोस्ट पढ़ें और अपना अनुभव कमेंट में बताएं। इससे हम सब सीखेंगे। कमेंट करें, शेयर करें!
[संबंधित पोस्ट के लिंक – 2–3]
- भारतीय संविधान अनुच्छेद 6: प्रवासियों की नागरिकता
- नागरिकता अधिनियम 1955: पूरी जानकारी
- अनुच्छेद 11: संसद की शक्ति
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