Article 6 - Rights of citizenship of certain persons who have migrated to India from Pakistan
1947 का वो भयावह दौर जब ट्रेनें खून से लाल हो रही थीं, परिवार एक पल में बिखर जा रहे थे, और लाखों लोग रातों-रात बेघर हो गए। पाकिस्तान से भारत आए ये लोग कौन थे। क्या वे अपने नए घर में सचमुच नाग्वासियों की तरह नागरिक कहलाएंगे। यही वो सवाल था जिसने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 6 को जन्म दिया। ये अनुच्छेद सिर्फ एक कानूनी नियम नहीं है, बल्कि विभाजन की त्रासदी में करुणा की एक जीती-जागती मिसाल है। आज हम इसे सरल हिंदी में समझेंगे, बिलकुल घर में बैठकर बात करने की तरह। चाहे आप कानून के छात्र हों, वकील हों, प्रोफेसर हों, या बस एक जिज्ञासु नागरिक जो अपने अधिकार जानना चाहता है, ये लेख आपके लिए है। हम ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से लेकर कानूनी शब्दों की आसान व्याख्या तक, संविधान सभा की बहसों से लेकर अदालती फैसलों तक, और तीन वास्तविक जीवन की कहानियों तक सब कुछ कवर करेंगे। कुल चार हजार शब्दों में पूरी कहानी सामने आएगी।
परिचय: विभाजन की आग में जन्मी नागरिकता की गारंटी
साल 1947 में भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ। पंद्रह अगस्त को आजादी मिली, लेकिन उस आजादी की कीमत चुकानी पड़ी लाखों लोगों की जान और करोड़ों की बेघरी से। एक अनुमान के मुताबिक करीब डेढ़ करोड़ लोग विस्थापित हुए। पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, और दूसरे समुदाय के लोग भारत में शरण मांग रहे थे। उनके मन में एक ही सवाल था कि क्या वे भारत के नागरिक होंगे। अनुच्छेद 5 सामान्य नागरिकता की बात करता है, लेकिन पाकिस्तान से आए लोगों के लिए खास नियमों की जरूरत थी। इसी जरूरत ने अनुच्छेद 6 को जन्म दिया। ये कहता है कि अगर आप पाकिस्तान से भारत आए हैं और कुछ शर्तें पूरी करते हैं, तो छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास, यानी संविधान लागू होने की तारीख से आप भारत के नागरिक माने जाएंगे। सरल शब्दों में कहें तो ये अनुच्छेद उन लोगों को अपनेपन की गारंटी देता है जो विभाजन की मार झेलकर भारत आए। ये करुणा और कानूनी स्पष्टता का अनोखा मेल है जो आज भी लाखों परिवारों की नींव बना हुआ है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: क्यों बना अनुच्छेद 6
उन्नीस सौ सैंतालीस में ब्रिटिश भारत दो टुकड़ों में बंट गया, भारत और पाकिस्तान। लाहौर, कराची, ढाका जैसे शहर पाकिस्तान में चले गए। हिंसा का दौर चला, दंगे हुए, कत्लेआम हुए, बलात्कार हुए। लाखों लोग मारे गए, करोड़ों बेघर हो गए। लोग ट्रेनों में, पैदल, बैलगाड़ियों में सामान और परिवार लेकर भारत की ओर भागे। डॉक्टर अंबेडकर और संविधान सभा की टीम को लगा कि अनुच्छेद 5 जैसे सामान्य नियम इनके लिए काफी नहीं हैं। उन्नीस जुलाई उन्नीस सौ अड़तालीस की तारीख महत्वपूर्ण हो गई क्योंकि इसी दिन से भारत में परमिट सिस्टम शुरू हुआ। इससे पहले आए लोग आसानी से नागरिक बन सकते थे, बाद में प्रक्रिया सख्त हो गई। उद्देश्य था करुणा दिखाना लेकिन दुरुपयोग रोकना। मान लीजिए एक परिवार लाहौर से दिल्ली आया, उनके पास कुछ नहीं सिर्फ उम्मीद। अनुच्छेद 6 ने उन्हें कहा तुम हमारे हो। ये प्रावधान विभाजन के मानवीय संकट की सीधी प्रतिक्रिया था। लाखों लोगों ने सब कुछ खोया, घर, संपत्ति, रिश्ते। संविधान निर्माताओं ने महसूस किया कि इन लोगों को कानूनी मान्यता और स्थिरता चाहिए। इसी सोच ने अनुच्छेद 6 को आकार दिया। ये सिर्फ कागजी नियम नहीं था, बल्कि एक नए राष्ट्र की नींव में समावेशिता की भावना था।
अनुच्छेद 6 का पूरा पाठ और सरल व्याख्या
अनुच्छेद 6 कहता है कि अनुच्छेद 5 में कुछ भी होने के बावजूद जो व्यक्ति पाकिस्तान से भारत आया है वह संविधान शुरू होने पर भारत का नागरिक माना जाएगा अगर वह या उसके माता-पिता या दादा-दादी में से कोई उन्नीस सौ पैंतीस के भारत सरकार अधिनियम में परिभाषित भारत में पैदा हुआ हो और अगर उन्नीस जुलाई उन्नीस सौ अड़तालीस से पहले आया तो प्रवासन की तारीख से भारत में सामान्य रूप से निवासी रहा हो या अगर उन्नीस जुलाई उन्नीस सौ अड़तालीस को या बाद में आया तो संविधान शुरू होने से पहले पंजीकरण करवाया हो और आवेदन से पहले कम से कम छह महीने भारत में रहा हो। आसान भाषा में समझें तो पैतृक जन्म की शर्त है कि आपके परिवार का कोई एक सदस्य अविभाजित भारत में पैदा हुआ हो। उन्नीस जुलाई उन्नीस सौ अड़तालीस से पहले आए लोगों को बस भारत में लगातार रहना था। बाद में आए लोगों को पहले छह महीने रहना पड़ता था फिर अधिकारी से पंजीकरण करवाना पड़ता था। उन्नीस सौ पैंतीस का भारत इसमें आज का पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल है। ये शर्त इसलिए थी कि सिर्फ ऐतिहासिक भारतीय ही नागरिक बनें। दो रास्ते थे, एक उन्नीस जुलाई उन्नीस सौ अड़तालीस से पहले आने वालों के लिए जहां सामान्य निवासी होना काफी था। दूसरा बाद में आने वालों के लिए जहां पंजीकरण और छह महीने का निवास जरूरी था। सामान्य निवासी का मतलब सिर्फ शरीर का रहना नहीं बल्कि दिल से भारत में बसना था। अदालतों ने बाद में स्पष्ट किया कि इरादा सबसे महत्वपूर्ण है।
संविधान सभा में गर्मागर्म बहस
अनुच्छेद 6 उन्नीस सौ अड़तालीस के मसौदा संविधान में नहीं था। इसे मसौदा अनुच्छेद 5A के रूप में दस, ग्यारह और बारह अगस्त उन्नीस सौ उनचास को पेश किया गया। कुछ सदस्यों ने कहा कि लिख दो कि नागरिक अशांति या डर के कारण आए हैं ताकि साफ हो कि ये हिंसा से भागे लोग हैं। ये प्रस्ताव खारिज हो गया क्योंकि सभी कारण लिखना मुश्किल था। एक सदस्य ने कहा कि भारतीय नागरिकता एक महान विशेषाधिकार है कोई सस्ती चीज नहीं, वंश और स्थायी रहने का इरादा साबित करना जरूरी है। ड्राफ्टिंग कमिटी ने जवाब दिया कि ये सिर्फ बुनियादी सिद्धांत हैं पूरा कानून संसद बनाएगी। "भारत का नागरिक माना जाएगा" शब्द पर चिंता हुई कि कहीं ये दोयम दर्जे की नागरिकता न लगे। स्पष्ट किया गया कि सभी बराबर हैं। बारह अगस्त उन्नीस सौ उनचास को अनुच्छेद पास हो गया। ये बहसें दिखाती हैं कि संविधान निर्माता कितने सतर्क थे। वे करुणा चाहते थे लेकिन दुरुपयोग नहीं। नागरिकता को सम्मान की चीज माना गया। मसौदा समिति ने याद दिलाया कि ये राष्ट्रीयता कानून की पूरी संहिता नहीं सिर्फ आधार है।
अनुच्छेद 6 की शर्तों का विस्तार से ब्रेकडाउन
खंड ए पैतृक जन्म की बात करता है। उन्नीस सौ पैंतीस के भारत सरकार अधिनियम में परिभाषित भारत में जन्म जरूरी है। ये इसलिए कि नागरिकता भूमि से ऐतिहासिक संबंध रखे। खंड बी दो रास्ते देता है। उन्नीस जुलाई उन्नीस सौ अड़तालीस से पहले आने वालों को सामान्य निवासी रहना था। बाद में आने वालों को पंजीकरण और छह महीने का निवास। उन्नीस जुलाई उन्नीस सौ अड़तालीस की तारीख परमिट सिस्टम की शुरुआत थी। सामान्य निवासी का मतलब निरंतर वैध उपस्थिति और भारत को स्थायी घर बनाने का इरादा। पंजीकरण की प्रक्रिया डोमिनियन सरकार द्वारा निर्धारित थी। परंतुक कहता है कि छह महीने से कम रहने पर पंजीकरण नहीं होगा। ये ढांचा तारीख आधारित था ताकि प्रवासन व्यवस्थित हो।
तीन वास्तविक जीवन की कहानियां
पहली कहानी रवि के परिवार की है। रवि के दादाजी लाहौर में पैदा हुए थे जो उन्नीस सौ पैंतीस के भारत का हिस्सा था। जून उन्नीस सौ सैंतालीस में पूरा परिवार दिल्ली आ गया। उन्नीस जुलाई उन्नीस सौ अड़तालीस से पहले का प्रवासन था और तब से वे दिल्ली में ही रह रहे थे। कोई पंजीकरण की जरूरत नहीं पड़ी। छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास से वे स्वतः नागरिक बन गए। आज रवि की पीढ़ी गर्व से कहती है कि अनुच्छेद 6 ने उनके परिवार को नई जिंदगी दी।
दूसरी कहानी आयशा की मां की है। आयशा की मां कराची में पैदा हुईं। अगस्त उन्नीस सौ अड़तालीस में मुंबई आईं। उन्नीस जुलाई उन्नीस सौ अड़तालीस के बाद का मामला था। उन्होंने छह महीने मुंबई में रहकर उन्नीस सौ उनचास में नियुक्त अधिकारी से पंजीकरण करवाया। पंजीकरण के बाद वे नागरिक बनीं। आयशा बताती है कि उस पंजीकरण पत्र ने उनकी मां को सम्मान और सुरक्षा दी।
तीसरी कहानी शानो देवी बनाम मंगल सैन केस की है। उन्नीस सौ साठ में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया। मंगल सैन पंजाब में पैदा हुए, उन्नीस सौ सैंतालीस में भारत आए लेकिन उन्नीस सौ अड़तालीस में बर्मा जाने की असफल कोशिश की। उनकी नागरिकता को चुनौती दी गई कि क्या वे सामान्य निवासी हैं। कोर्ट ने कहा हां क्योंकि उनका इरादा भारत में स्थायी रूप से रहने का था। अस्थायी अनुपस्थिति मायने नहीं रखती। ये फैसला मानवीय व्याख्या का उदाहरण बना।
अदालतों की न्यायिक व्याख्या
शानो देवी केस में कोर्ट ने कहा इरादा शारीरिक उपस्थिति से ज्यादा महत्वपूर्ण है। कुलथिल मामू बनाम केरल में प्रवासन को स्थायी छोड़ना माना गया। बार-बार जाना अस्थायी यात्रा है। बिहार बनाम कुमार अमर सिंह में अस्थायी इलाज के लिए गई महिला की नागरिकता खारिज हुई क्योंकि वो स्थायी प्रवासन था। उत्तर प्रदेश बनाम रहमतुल्लाह में दोहरी नागरिकता वाले को निकालने का अधिकार केंद्र को दिया। इब्राहिम वज़ीर में नागरिक को बिना कारण निकालना असंवैधानिक माना। सत्रह अक्टूबर दो हजार चौबीस को सुप्रीम कोर्ट ने धारा 6A की वैधता बरकरार रखी। कहा कि अनुच्छेद 6 का उल्लंघन नहीं क्योंकि समय अलग है लेकिन मानवीय भावना वही है। बहुमत ने कार्यान्वयन की कमी पर जोर दिया।
अन्य देशों से तुलना और समकालीन प्रासंगिकता
उदाहरण 1: रवि का परिवार (पहला रास्ता)
रवि के दादाजी लाहौर (पाकिस्तान) में पैदा हुए। जून 1947 में परिवार दिल्ली आया। शर्तें पूरी हुईं:
- दादाजी 1935 के भारत में पैदा।
- 19 जुलाई 1948 से पहले आए।
- तब से दिल्ली में रह रहे। नतीजा: 26 जनवरी 1950 से स्वतः नागरिक। कोई पंजीकरण नहीं। आज रवि की पीढ़ी गर्व से कहती है कि अनुच्छेद 6 ने उनके परिवार को नई जिंदगी दी।
उदाहरण 2: आयशा की मां (दूसरा रास्ता)
आयशा की मां कराची में पैदा हुईं। अगस्त 1948 में मुंबई आईं। शर्तें पूरी हुईं:
- मां 1935 के भारत में पैदा।
- 19 जुलाई 1948 के बाद आईं।
- 6 महीने मुंबई रहीं → 1949 में पंजीकरण। नतीजा: पंजीकरण के बाद नागरिक। आयशा बताती है कि उस पंजीकरण पत्र ने उनकी मां को सम्मान और सुरक्षा दी।
उदाहरण 3: शानो देवी vs मंगल सैन (1960)
मंगल सैन पंजाब में पैदा। 1947 में भारत आए, लेकिन 1948 में बर्मा जाने की कोशिश की (असफल)। उनकी नागरिकता को चुनौती दी गई।
कोर्ट का फैसला: हाँ, नागरिक हैं! इरादा भारत में रहने का था। अस्थायी अनुपस्थिति मायने नहीं। ये फैसला मानवीय व्याख्या का उदाहरण बना।निष्कर्ष: करुणा का संवैधानिक चेहरा
अनुच्छेद 6 सिर्फ कानून नहीं मानवता की जीत है। इसने लाखों को घर दिया जब दुनिया ने दरवाजे बंद कर दिए। छात्रों के लिए ये संविधान की आत्मा समझने का तरीका है। नागरिकों के लिए अपने अधिकार जानने का। विभाजन भूलें नहीं करुणा याद रखें। क्या आपका परिवार प्रभावित था। सोचिए और बताइए।
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