भारत का संविधान कैसे बना? | Bharat ka Sanvidhan kaise bana ?
भारत का संविधान सिर्फ एक कानूनी किताब नहीं है, बल्कि यह हमारी आजादी की लड़ाई का जीवंत दस्तावेज है। कल्पना कीजिए, 1940 के दशक में जब पूरा देश आजादी की मांग कर रहा था, तब ब्रिटिश सरकार ने भी मान लिया कि भारत को अपना संविधान चाहिए। लेकिन यह इतना आसान नहीं था। लंबे संघर्ष, बहसों और समझौतों के बाद 26 नवंबर 1949 को यह अपनाया गया। 26 जनवरी 1950 को लागू होने पर भारत गणराज्य बना।
यह प्रक्रिया 2 साल, 11 महीने और 18 दिनों में पूरी हुई। कुल 166 दिनों की बैठकों में हजारों विचारों पर चर्चा हुई। डॉ. बी.आर. अंबेडकर जैसे महान विचारकों की मेहनत ने इसे आकार दिया। आज हम इसकी 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके पीछे कितनी रोचक कहानियां हैं? इस ब्लॉग में हम सरल भाषा में पूरा इतिहास समझेंगे – बिना जटिल शब्दों के। अगर आप स्टूडेंट हैं या सामान्य ज्ञान बढ़ाना चाहते हैं, तो अंत तक पढ़ें। चलिए, शुरू से शुरू करते हैं!
संविधान निर्माण की पृष्ठभूमि: आजादी की मांग से सभा तक
भारत का संविधान अचानक नहीं बना। इसकी जड़ें 19वीं सदी में हैं, जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था। 1773 के रेगुलेटिंग एक्ट से शुरू होकर, 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट तक, ब्रिटिशों ने धीरे-धीरे भारतीयों को शासन में भागीदारी दी। लेकिन असली बदलाव द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आया।
1940 में ब्रिटिश सरकार ने पहली बार संविधान सभा की जरूरत मानी। फिर 1945 में लेबर पार्टी सत्ता में आई और भारत को आजादी का वादा किया। जुलाई 1945 में कैबिनेट मिशन भेजा गया – इसमें लॉर्ड पैथिक लॉरेंस, सर स्टेफर्ड क्रिप्स और ए.वी. अलेक्जेंडर थे। मिशन का मकसद था संविधान सभा बनाना। उन्होंने कहा कि सभा प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा चुनी जाएगी।
भारतीय नेता खुश हुए। कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने सहमति दी, लेकिन लीग ने अलग सभा की मांग की। जुलाई 1946 में चुनाव हुए। कुल 389 सदस्य चुने गए – 296 ब्रिटिश प्रांतों से, 93 रियासतों से। लेकिन 15 अगस्त 1947 को बंटवारे के बाद संख्या घटकर 299 रह गई। महिलाओं में सिर्फ 15 थीं, जैसे सरोजिनी नायडू, हंसा मेहता। अनुसूचित जाति से 26 और जनजाति से 33 सदस्य थे।
यह सभा सिर्फ संविधान बनाने वाली नहीं थी – यह प्रावधानीय संसद भी बनी। रोचक तथ्य: सभा में 30 से ज्यादा अनुसूचित वर्ग के प्रतिनिधि थे। फ्रैंक एंथनी एंग्लो-इंडियन समुदाय के थे, और एच.पी. मोदी पारसी समुदाय के। यह विविधता ही संविधान की ताकत बनी।
संविधान सभा की पहली बैठक: उम्मीदों का आगमन
9 दिसंबर 1946 को नई दिल्ली के संविधान हॉल (अब संसद का सेंट्रल हॉल) में पहली बैठक हुई। डॉ. सचचिदानंद सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष चुना गया। मुस्लिम लीग ने बहिष्कार किया, लेकिन सभा आगे बढ़ी। 11 दिसंबर को डॉ. राजेंद्र प्रसाद स्थायी अध्यक्ष बने, हरेंद्र कुमार मुखर्जी उपाध्यक्ष।
13 दिसंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने 'उद्देश्य प्रस्ताव' पेश किया। यह प्रस्तावना का आधार बना – "हम भारत के लोग... न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता सुनिश्चित करने के लिए..."। 22 जनवरी 1947 को इसे अपनाया गया। नेहरू ने कहा, "यह प्रस्ताव हमारी आकांक्षाओं का खाका है।"
यह बैठक भावुक थी। सभा में 207 सदस्य थे, जिनमें नेहरू, पटेल, आजाद जैसे नेता। रोचक कहानी: सभा की पहली बहस में नेहरू ने कविता पढ़ी, जो बाद में प्रस्तावना में झलकती है। सभा ने 22 समितियां बनाईं – 8 प्रमुख। जैसे, मौलिक अधिकार समिति (सरदार पटेल), अल्पसंख्यक समिति (एच.सी. मुखर्जी)।
प्रमुख समितियां और उनका योगदान: बहसों का दौर
संविधान सभा ने काम को आसान बनाने के लिए कई समितियां बनाईं। सबसे महत्वपूर्ण थी ड्राफ्टिंग कमिटी, जो 29 अगस्त 1947 को बनी। डॉ. बी.आर. अंबेडकर इसके अध्यक्ष थे। अन्य सदस्य: एन. गोपालास्वामी अयंगर, अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर, के.एम. मुंशी, सैयद मोहम्मद सादुल्ला, एन. माधव राव (डी.पी. खेतान की जगह) और टी.टी. कृष्णमाचारी (बी.एल. मित्र की जगह)।
अंबेडकर ने कहा, "संविधान सिर्फ कानून नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का साधन है।" कमिटी ने बी.एन. राव के प्रारंभिक ड्राफ्ट (243 अनुच्छेद, 13 अनुसूचियां) पर काम किया। 4 नवंबर 1947 को संशोधित ड्राफ्ट सभा को सौंपा। कुल 7,635 संशोधन आए, जिनमें 2,473 चर्चा में आए।
अन्य समितियां:
- यूनियन पावर समिति: नेहरू की अध्यक्षता में – केंद्र-राज्य संबंध तय किए।
- फंडामेंटल राइट्स समिति: सरदार पटेल – मौलिक अधिकारों का खाका बनाया।
- माइनॉरिटी समिति: एच.सी. मुखर्जी – अल्पसंख्यकों के अधिकार सुनिश्चित।
- स्टेट्स कमिटी: नेहरू – रियासतों का एकीकरण।
रोचक तथ्य: टी.टी. कृष्णमाचारी ने कहा, "ड्राफ्टिंग कमिटी पर बोझ पड़ा क्योंकि कई सदस्य अनुपस्थित थे – एक अमेरिका में, एक बीमार। लेकिन अंबेडकर ने रात-दिन काम किया।" सभा ने 11 सत्र किए, 165 दिनों में। प्रेस को खुली अनुमति थी, इसलिए बहसें रेडियो पर भी सुनी गईं।
एक और रोचक घटना: 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रीय ध्वज अपनाया गया। 15 अगस्त 1947 को आजादी के बाद सभा ने संविधान कार्य तेज किया।
ड्राफ्ट तैयार होना: चुनौतियां और समाधान
फरवरी 1948 में बी.एन. राव ने प्रारंभिक ड्राफ्ट तैयार किया – 243 अनुच्छेद। फिर ड्राफ्टिंग कमिटी ने इसे 315 अनुच्छेदों में बदल दिया। चर्चाओं में विवाद हुए – जैसे, भाषा पर (हिंदी vs अंग्रेजी), संपत्ति अधिकार पर।
अंबेडकर ने 25 नवंबर 1949 को अंतिम ड्राफ्ट पेश किया। उन्होंने कहा, "क्रेडिट मुझे नहीं, बल्कि बी.एन. राव, एस.एन. मुखर्जी (चीफ ड्राफ्ट्समैन) और स्टाफ को।" मुखर्जी ने जटिल प्रस्तावों को सरल भाषा में लिखा। सभा ने 24 जनवरी 1950 को हस्ताक्षर किए – हिंदी और अंग्रेजी में दो प्रतियां।
कुल खर्च: 6.4 मिलियन रुपये। मूल प्रतिलिपि प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने लिखी, शांतिनिकेतन के कलाकारों (नंदलाल बोस, राममनोहर सिन्हा) ने सजाई। यह नाइट्रोजन से भरे केस में संसद लाइब्रेरी में रखी है।
रोचक कहानी: संविधान को छापने में देहरादून के सर्वे ऑफ इंडिया ने मदद की। यह 5 साल लगा! 26 नवंबर को 'लॉ डे' या संविधान दिवस मनाया जाता है, जो 2015 से आधिकारिक है।
समयरेखा: प्रमुख घटनाओं की एक झलक
नीचे संविधान निर्माण की मुख्य घटनाओं की समयरेखा है। यह आपको पूरी प्रक्रिया को एक नजर में समझने में मदद करेगी:
| तारीख | घटना | महत्व |
|---|---|---|
| जुलाई 1945 | कैबिनेट मिशन भारत आया | संविधान सभा की रूपरेखा बनी |
| जुलाई 1946 | सभा चुनाव | 389 सदस्य चुने गए |
| 9 दिसंबर 1946 | पहली बैठक | डॉ. सिन्हा अस्थायी अध्यक्ष |
| 13 दिसंबर 1946 | नेहरू का उद्देश्य प्रस्ताव | प्रस्तावना का आधार |
| 15 अगस्त 1947 | आजादी, सभा प्रावधानीय संसद बनी | कार्य तेज |
| 29 अगस्त 1947 | ड्राफ्टिंग कमिटी गठन | अंबेडकर अध्यक्ष |
| 4 नवंबर 1947 | संशोधित ड्राफ्ट सभा को | चर्चा शुरू |
| 22 जनवरी 1947 | उद्देश्य प्रस्ताव अपनाया | सिद्धांत तय |
| 26 नवंबर 1949 | संविधान अपनाया | 284 हस्ताक्षर |
| 24 जनवरी 1950 | अंतिम सत्र, हस्ताक्षर | समापन |
| 26 जनवरी 1950 | लागू, गणतंत्र दिवस | भारत गणराज्य बना |
यह टेबल दिखाती है कि कैसे धीरे-धीरे प्रक्रिया आगे बढ़ी। कुल 114 दिन बहस पर लगे।
चुनौतियां: बंटवारा, बहिष्कार और विवाद
संविधान बनाना आसान नहीं था। मुस्लिम लीग का बहिष्कार बड़ी चुनौती था – जिन्ना अलग पाकिस्तान चाहते थे। बंटवारे में 93 सदस्य पाकिस्तान चले गए। दंगे भड़के, लेकिन सभा ने शांति से काम किया।
एक और विवाद: भाषा। कुछ हिंदी चाहते थे, कुछ अंग्रेजी। अंत में दोनों को रखा। संपत्ति अधिकार पर बहस लंबी चली। अंबेडकर ने कहा, "सामाजिक न्याय के बिना संविधान अधूरा।" महिलाओं के अधिकार, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर जोर दिया।
रोचक तथ्य: सभा में मार्क्सवादी, उदारवादी, हिंदू पुनरुत्थानवादी सब थे। कांग्रेस के 69% सदस्य थे, लेकिन विविधता थी। विंस्टन चर्चिल ने कहा, "यह सिर्फ एक समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है," लेकिन यह गलत था। सभा ने सभी को शामिल किया।
संविधान अपनाने के बाद: विरासत और महत्व
26 नवंबर 1949 को सभा ने संविधान अपनाया। नेहरू ने कहा, "यह हमारी आकांक्षाओं का दर्पण है।" 26 जनवरी चुनी गई क्योंकि 1930 में लाहौर अधिवेशन में 'पूर्ण स्वराज' की घोषणा हुई थी।
संविधान ने भारत को संघीय लेकिन एकात्मक ढांचा दिया। मूल में 395 अनुच्छेद, 22 भाग, 8 अनुसूचियां। अब 470 अनुच्छेद, 25 भाग, 12 अनुसूचियां। 106 संशोधन हो चुके। 42वें संशोधन (1976) ने 'समाजवादी, पंथनिरपेक्ष' जोड़े।
महत्व: यह न्याय, समानता, स्वतंत्रता देता है। मौलिक अधिकार अमेरिका से, नीति निर्देशक आयरलैंड से लिए। अंबेडकर ने कहा, "संविधान जिएं, न कि सिर्फ पढ़ें।" आज यह हमारी एकता का प्रतीक है।
निष्कर्ष
भारत का संविधान सिर्फ कागज का दस्तावेज नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों की सपनों की इमारत है। संविधान सभा के सदस्यों – नेहरू, पटेल, अंबेडकर से लेकर साधारण प्रतिनिधियों तक – ने विविधता में एकता का संदेश दिया। चुनौतियों के बावजूद, उन्होंने ऐसा दस्तावेज बनाया जो आज भी प्रासंगिक है। 75 साल बाद भी, यह हमें सामाजिक न्याय की याद दिलाता है।
अगर आप इस इतिहास से प्रेरित हुए, तो संविधान दिवस पर इसे दोबारा पढ़ें। अगली पोस्ट में हम संविधान की खास विशेषताओं पर बात करेंगे। आपकी राय कमेंट में बताएं – क्या कोई रोचक तथ्य जानते हैं?


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